कोई दीवाना कहता है
भरी महफ़िल में वो मुझे रुसवा हर बार करती है
यकीं है सारी दुनिया को खफ़ा है मुझसे वो लेकिन
मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करती है
कोई खामोस है इतना बहाने भूल आया हूँ
किसी की तरन्नुम में तराने भूल अया हूँ
मेरी अब राह मत तकना कभी ऐ आसमां वालों
में इक चिड़िया की आखों में उड़ने भूल आया हूँ
मेरा प्रतिमान आँसू में भिगोकर गढ़ लिया होता
अकिंचन पाँव तब आगे तुम्हारा बढ़ लिए होता
मेरी आँखों में भी अंकित समर्पण की ऋचाएँ थीं
कुछ अर्थ मिल जाता जो तुमने पढ़ लिया होता
तुम्हारे पास हूँ जो दूरी है , समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है , समझता हूँ
तुम्हें में भूल जाऊंगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन
तुम्ही को भूलना है ,समझता हूँ
सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता
खुशी के घर में भी बोलो कभी क्या गम नहीं होता
फ़क़त इक आदमी के वास्ते जग छोड़ने वालों
फ़क़त उस आदमी से ये ज़माना कम नहीं होता
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