Tuesday 7 July 2015

Koi Deewana Kehta hai

कोई  दीवाना कहता है 

में उसका हूँ वो  इस अहसास से इनकार करती है 
भरी महफ़िल में वो मुझे रुसवा हर बार करती है 
यकीं है सारी  दुनिया को खफ़ा है मुझसे वो लेकिन 
मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करती है 

कोई खामोस  है इतना बहाने भूल आया हूँ 
किसी की  तरन्नुम में  तराने भूल अया हूँ 
मेरी अब राह मत तकना कभी ऐ आसमां वालों 
में इक चिड़िया की आखों में  उड़ने भूल आया  हूँ  

मेरा प्रतिमान आँसू में भिगोकर गढ़ लिया होता 
अकिंचन पाँव तब आगे तुम्हारा बढ़ लिए होता 
मेरी आँखों में भी अंकित  समर्पण  की ऋचाएँ थीं 
 कुछ अर्थ मिल जाता जो तुमने पढ़ लिया होता 

तुम्हारे पास हूँ जो दूरी है , समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है , समझता  हूँ 
तुम्हें में भूल जाऊंगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन 
तुम्ही को भूलना  है ,समझता हूँ 

सदा  तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता
खुशी के घर में भी बोलो कभी क्या गम नहीं होता
फ़क़त इक आदमी के वास्ते जग छोड़ने वालों
फ़क़त उस  आदमी से ये ज़माना कम नहीं होता

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